Job 14

14

“मनुष्य जो स्त्री से उत्‍पन्‍न होता है,

2

वह फूल के समान खिलता, फिर तोड़ा जाता है;

3

फिर क्या तू ऐसे पर दृष्टि लगाता है?

4

अशुद्ध वस्तु से शुद्ध वस्तु को कौन निकाल सकता है?

5

मनुष्य के दिन नियुक्त किए गए हैं,

6

इस कारण उससे अपना मुँह फेर ले, कि वह आराम करे,

7

'वृक्ष' के लिये तो आशा रहती है,

8

चाहे उसकी जड़ भूमि में पुरानी भी हो जाए,

9

तो भी वर्षा की गन्ध पाकर वह फिर पनपेगा,

10

परन्तु मनुष्य मर जाता, और पड़ा रहता है;

11

जैसे नदी का जल घट जाता है,

12

वैसे ही मनुष्य लेट जाता और फिर नहीं उठता;

13

भला होता कि तू मुझे अधोलोक में छिपा लेता,

14

यदि मनुष्य मर जाए तो क्या वह फिर जीवित होगा?

15

तू मुझे पुकारता, और मैं उत्तर देता हूँ;

16

परन्तु अब तू मेरे पग-पग को गिनता है,

17

मेरे अपराध छाप लगी हुई थैली में हैं,

18

“और निश्चय पहाड़ भी गिरते-गिरते नाश हो जाता है,

19

और पत्थर जल से घिस जाते हैं,

20

तू सदा उस पर प्रबल होता, और वह जाता रहता है;

21

उसके पुत्रों की बड़ाई होती है, और यह उसे नहीं सूझता;

22

केवल उसकी अपनी देह को दुःख होता है;