Job 6

6

¶ फिर अय्यूब ने उत्तर देकर कहा,

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“भला होता कि मेरा खेद तौला जाता,

3

क्योंकि वह समुद्र की रेत से भी भारी ठहरती;

4

क्योंकि सर्वशक्तिमान के तीर मेरे अन्दर चुभे हैं;

5

जब जंगली गदहे को घास मिलती, तब क्या वह रेंकता है?

6

जो फीका है क्या वह बिना नमक खाया जाता है?

7

जिन वस्तुओं को मैं छूना भी नहीं चाहता वही

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“भला होता कि मुझे मुँह माँगा वर मिलता

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कि परमेश्‍वर प्रसन्‍न होकर मुझे कुचल डालता,

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यही मेरी शान्ति का कारण;

11

मुझ में बल ही क्या है कि मैं आशा रखूँ? और

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क्या मेरी दृढ़ता पत्थरों के समान है?

13

क्या मैं निराधार नहीं हूँ?

14

“जो पड़ोसी पर कृपा नहीं करता वह

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मेरे भाई नाले के समान विश्वासघाती हो गए हैं,

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और वे बर्फ के कारण काले से हो जाते हैं,

17

परन्तु जब गरमी होने लगती तब उनकी धाराएँ लोप हो जाती हैं,

18

वे घूमते-घूमते सूख जातीं,

19

तेमा के बंजारे देखते रहे और शेबा के

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वे लज्जित हुए क्योंकि उन्होंने भरोसा रखा था;

21

उसी प्रकार अब तुम भी कुछ न रहे;

22

क्या मैंने तुम से कहा था, 'मुझे कुछ दो?'

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या 'मुझे सतानेवाले के हाथ से बचाओ?'

24

“मुझे शिक्षा दो और मैं चुप रहूँगा;

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सच्चाई के वचनों में कितना प्रभाव होता है,

26

क्या तुम बातें पकड़ने की कल्पना करते हो?

27

तुम अनाथों पर चिट्ठी डालते,

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“इसलिए अब कृपा करके मुझे देखो;

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फिर कुछ अन्याय न होने पाए; फिर इस मुकद्दमें

30

क्या मेरे वचनों में कुछ कुटिलता है?