Psaumes 119

119

क्या ही धन्य हैं वे जो चाल के खरे हैं,

2

क्या ही धन्य हैं वे जो उसकी चितौनियों को मानते हैं,

3

फिर वे कुटिलता का काम नहीं करते,

4

तूने अपने उपदेश इसलिए दिए हैं,

5

भला होता कि

6

तब मैं तेरी सब आज्ञाओं की ओर चित्त लगाए रहूँगा,

7

जब मैं तेरे धर्ममय नियमों को सीखूँगा,

8

मैं तेरी विधियों को मानूँगा:

9

जवान अपनी चाल को किस उपाय से शुद्ध रखे?

10

मैं पूरे मन से तेरी खोज में लगा हूँ;

11

मैंने तेरे वचन को अपने हृदय में रख छोड़ा है,

12

हे यहोवा, तू धन्य है;

13

तेरे सब कहे हुए नियमों का वर्णन,

14

मैं तेरी चितौनियों के मार्ग से,

15

मैं तेरे उपदेशों पर ध्यान करूँगा,

16

मैं तेरी विधियों से सुख पाऊँगा;

17

अपने दास का उपकार कर कि मैं जीवित रहूँ,

18

मेरी आँखें खोल दे, कि मैं तेरी व्यवस्था की

19

मैं तो पृथ्वी पर परदेशी हूँ;

20

मेरा मन तेरे नियमों की अभिलाषा के कारण

21

तूने अभिमानियों को, जो श्रापित हैं, घुड़का है,

22

मेरी नामधराई और अपमान दूर कर,

23

हाकिम भी बैठे हुए आपस में मेरे विरुद्ध बातें करते थे,

24

तेरी चितौनियाँ मेरा सुखमूल

25

मैं धूल में पड़ा हूँ;

26

मैंने अपनी चालचलन का तुझ से वर्णन किया है और तूने मेरी बात मान ली है;

27

अपने उपदेशों का मार्ग मुझे समझा,

28

मेरा जीव उदासी के मारे गल चला है;

29

मुझ को झूठ के मार्ग से दूर कर;

30

मैंने सच्चाई का मार्ग चुन लिया है,

31

मैं तेरी चितौनियों में लौलीन हूँ,

32

जब तू मेरा हियाव बढ़ाएगा,

33

हे यहोवा, मुझे अपनी विधियों का मार्ग सिखा दे;

34

मुझे समझ दे, तब मैं तेरी व्यवस्था को पकड़े रहूँगा

35

अपनी आज्ञाओं के पथ में मुझ को चला,

36

मेरे मन को लोभ की ओर नहीं,

37

मेरी आँखों को व्यर्थ वस्तुओं की ओर से फेर दे;

38

तेरा वादा जो तेरे भय माननेवालों के लिये है,

39

जिस नामधराई से मैं डरता हूँ, उसे दूर कर;

40

देख, मैं तेरे उपदेशों का अभिलाषी हूँ;

41

हे यहोवा, तेरी करुणा और तेरा किया हुआ उद्धार,

42

तब मैं अपनी नामधराई करनेवालों को कुछ उत्तर दे सकूँगा,

43

मुझे अपने सत्य वचन कहने से न रोक

44

तब मैं तेरी व्यवस्था पर लगातार,

45

और मैं चौड़े स्थान में चला फिरा करूँगा,

46

और मैं तेरी चितौनियों की चर्चा राजाओं के सामने भी करूँगा,

47

क्योंकि मैं तेरी आज्ञाओं के कारण सुखी हूँ,

48

मैं तेरी आज्ञाओं की ओर जिनमें मैं प्रीति रखता हूँ, हाथ फैलाऊँगा

49

जो वादा तूने अपने दास को दिया है, उसे स्मरण कर,

50

मेरे दुःख में मुझे शान्ति उसी से हुई है,

51

अहंकारियों ने मुझे अत्यन्त ठट्ठे में उड़ाया है,

52

हे यहोवा, मैंने तेरे प्राचीन नियमों को स्मरण करके

53

जो दुष्ट तेरी व्यवस्था को छोड़े हुए हैं,

54

जहाँ मैं परदेशी होकर रहता हूँ, वहाँ तेरी विधियाँ,

55

हे यहोवा, मैंने रात को तेरा नाम स्मरण किया,

56

यह मुझसे इस कारण हुआ,

57

यहोवा मेरा भाग है;

58

मैंने पूरे मन से तुझे मनाया है;

59

मैंने अपनी चालचलन को सोचा,

60

मैंने तेरी आज्ञाओं के मानने में विलम्ब नहीं, फुर्ती की है।

61

मैं दुष्टों की रस्सियों से बन्ध गया हूँ,

62

तेरे धर्ममय नियमों के कारण

63

जितने तेरा भय मानते और तेरे उपदेशों पर चलते हैं,

64

हे यहोवा, तेरी करुणा पृथ्वी में भरी हुई है;

65

हे यहोवा, तूने अपने वचन के अनुसार

66

मुझे भली विवेक-शक्ति और समझ दे,

67

उससे पहले कि मैं दुःखित हुआ, मैं भटकता था;

68

तू भला है, और भला करता भी है;

69

अभिमानियों ने तो मेरे विरुद्ध झूठ बात गढ़ी है,

70

उनका मन मोटा हो गया है,

71

मुझे जो दुःख हुआ वह मेरे लिये भला ही हुआ है,

72

तेरी दी हुई व्यवस्था मेरे लिये

73

तेरे हाथों से मैं बनाया और रचा गया हूँ;

74

तेरे डरवैये मुझे देखकर आनन्दित होंगे,

75

हे यहोवा, मैं जान गया कि तेरे नियम धर्ममय हैं,

76

मुझे अपनी करुणा से शान्ति दे,

77

तेरी दया मुझ पर हो, तब मैं जीवित रहूँगा;

78

अहंकारी लज्जित किए जाए, क्योंकि उन्होंने मुझे झूठ के द्वारा गिरा दिया है;

79

जो तेरा भय मानते हैं, वह मेरी ओर फिरें,

80

मेरा मन तेरी विधियों के मानने में सिद्ध हो,

81

मेरा प्राण तेरे उद्धार के लिये बैचेन है;

82

मेरी आँखें तेरे वादे के पूरे होने की बाट जोहते-जोहते धुंधली पड़ गईं है;

83

क्योंकि मैं धुएँ में की कुप्पी के समान हो गया हूँ,

84

तेरे दास के कितने दिन रह गए हैं?

85

अहंकारी जो तेरी व्यवस्था के अनुसार नहीं चलते,

86

तेरी सब आज्ञाएँ विश्वासयोग्य हैं;

87

वे मुझ को पृथ्वी पर से मिटा डालने ही पर थे,

88

अपनी करुणा के अनुसार मुझ को जिला,

89

हे यहोवा, तेरा वचन,

90

तेरी सच्चाई पीढ़ी से पीढ़ी तक बनी रहती है;

91

वे आज के दिन तक तेरे नियमों के अनुसार ठहरे हैं;

92

यदि मैं तेरी व्यवस्था से सुखी न होता,

93

मैं तेरे उपदेशों को कभी न भूलूँगा;

94

मैं तेरा ही हूँ, तू मेरा उद्धार कर;

95

दुष्ट मेरा नाश करने के लिये मेरी घात में लगे हैं;

96

मैंने देखा है कि प्रत्येक पूर्णता की सीमा होती है,

97

आहा! मैं तेरी व्यवस्था में कैसी प्रीति रखता हूँ!

98

तू अपनी आज्ञाओं के द्वारा मुझे अपने शत्रुओं से अधिक बुद्धिमान करता है,

99

मैं अपने सब शिक्षकों से भी अधिक समझ रखता हूँ,

100

मैं पुरनियों से भी समझदार हूँ,

101

मैंने अपने पाँवों को हर एक बुरे रास्ते से रोक रखा है,

102

मैं तेरे नियमों से नहीं हटा,

103

तेरे वचन मुझ को कैसे मीठे लगते हैं,

104

तेरे उपदेशों के कारण मैं समझदार हो जाता हूँ,

105

तेरा वचन मेरे पाँव के लिये दीपक,

106

मैंने शपथ खाई, और ठान लिया है

107

मैं अत्यन्त दुःख में पड़ा हूँ;

108

हे यहोवा, मेरे वचनों को स्वेच्छाबलि जानकर ग्रहण कर,

109

मेरा प्राण निरन्तर मेरी हथेली पर रहता है,

110

दुष्टों ने मेरे लिये फंदा लगाया है,

111

मैंने तेरी चितौनियों को सदा के लिये अपना निज भाग कर लिया है,

112

मैंने अपने मन को इस बात पर लगाया है,

113

मैं दुचित्तों से तो बैर रखता हूँ,

114

तू मेरी आड़ और ढाल है;

115

हे कुकर्मियों, मुझसे दूर हो जाओ,

116

हे यहोवा, अपने वचन के अनुसार मुझे सम्भाल, कि मैं जीवित रहूँ,

117

मुझे थामे रख, तब मैं बचा रहूँगा,

118

जितने तेरी विधियों के मार्ग से भटक जाते हैं,

119

तूने पृथ्वी के सब दुष्टों को धातु के मैल के समान दूर किया है;

120

तेरे भय से मेरा शरीर काँप उठता है,

121

मैंने तो न्याय और धर्म का काम किया है;

122

अपने दास की भलाई के लिये जामिन हो,

123

मेरी आँखें तुझसे उद्धार पाने,

124

अपने दास के संग अपनी करुणा के अनुसार बर्ताव कर,

125

मैं तेरा दास हूँ, तू मुझे समझ दे

126

वह समय आया है, कि यहोवा काम करे,

127

इस कारण मैं तेरी आज्ञाओं को सोने से वरन् कुन्दन से भी अधिक प्रिय मानता हूँ।

128

इसी कारण मैं तेरे सब उपदेशों को सब विषयों में ठीक जानता हूँ;

129

तेरी चितौनियाँ अद्भुत हैं,

130

तेरी बातों के खुलने से प्रकाश होता है;

131

मैं मुँह खोलकर हाँफने लगा,

132

जैसी तेरी रीति अपने नाम के प्रीति रखनेवालों से है,

133

मेरे पैरों को अपने वचन के मार्ग पर स्थिर कर,

134

मुझे मनुष्यों के अत्याचार से छुड़ा ले,

135

अपने दास पर अपने मुख का प्रकाश चमका दे,

136

मेरी आँखों से आँसुओं की धारा बहती रहती है,

137

हे यहोवा तू धर्मी है,

138

तूने अपनी चितौनियों को

139

मैं तेरी धुन में भस्म हो रहा हूँ,

140

तेरा वचन पूरी रीति से ताया हुआ है,

141

मैं छोटा और तुच्छ हूँ,

142

तेरा धर्म सदा का धर्म है,

143

मैं संकट और सकेती में फँसा हूँ,

144

तेरी चितौनियाँ सदा धर्ममय हैं;

145

मैंने सारे मन से प्रार्थना की है,

146

मैंने तुझसे प्रार्थना की है, तू मेरा उद्धार कर,

147

मैंने पौ फटने से पहले दुहाई दी;

148

मेरी आँखें रात के एक-एक पहर से पहले खुल गईं,

149

अपनी करुणा के अनुसार मेरी सुन ले;

150

जो दुष्टता की धुन में हैं, वे निकट आ गए हैं;

151

हे यहोवा, तू निकट है,

152

बहुत काल से मैं तेरी चितौनियों को जानता हूँ,

153

मेरे दुःख को देखकर मुझे छुड़ा ले,

154

मेरा मुकद्दमा लड़, और मुझे छुड़ा ले;

155

दुष्टों को उद्धार मिलना कठिन है,

156

हे यहोवा, तेरी दया तो बड़ी है;

157

मेरा पीछा करनेवाले और मेरे सतानेवाले बहुत हैं,

158

मैं विश्वासघातियों को देखकर घृणा करता हूँ;

159

देख, मैं तेरे उपदेशों से कैसी प्रीति रखता हूँ!

160

तेरा सारा वचन सत्य ही है;

161

हाकिम व्यर्थ मेरे पीछे पड़े हैं,

162

जैसे कोई बड़ी लूट पाकर हर्षित होता है,

163

झूठ से तो मैं बैर और घृणा रखता हूँ,

164

तेरे धर्ममय नियमों के कारण मैं प्रतिदिन

165

तेरी व्यवस्था से प्रीति रखनेवालों को बड़ी शान्ति होती है;

166

हे यहोवा, मैं तुझसे उद्धार पाने की आशा रखता हूँ;

167

मैं तेरी चितौनियों को जी से मानता हूँ,

168

मैं तेरे उपदेशों और चितौनियों को मानता आया हूँ,

169

हे यहोवा, मेरी दुहाई तुझ तक पहुँचे;

170

मेरा गिड़गिड़ाना तुझ तक पहुँचे;

171

मेरे मुँह से स्तुति निकला करे,

172

मैं तेरे वचन का गीत गाऊँगा,

173

तेरा हाथ मेरी सहायता करने को तैयार रहता है,

174

हे यहोवा, मैं तुझसे उद्धार पाने की अभिलाषा करता हूँ,

175

मुझे जिला, और मैं तेरी स्तुति करूँगा,

176

मैं खोई हुई भेड़ के समान भटका हूँ;