Psalmen 32
32
क्या ही धन्य है वह जिसका अपराध
2
क्या ही धन्य है वह मनुष्य जिसके अधर्म
3
जब मैं चुप रहा
4
क्योंकि रात-दिन मैं तेरे हाथ के नीचे दबा रहा;
5
जब मैंने अपना पाप तुझ पर प्रगट किया
6
इस कारण हर एक भक्त तुझ से ऐसे समय
7
तू मेरे छिपने का स्थान है;
8
मैं तुझे बुद्धि दूँगा, और जिस मार्ग में तुझे
9
तुम घोड़े और खच्चर के समान न बनो जो समझ नहीं रखते,
10
दुष्ट को तो बहुत पीड़ा होगी;
11
हे धर्मियों यहोवा के कारण आनन्दित