Psalms 42
42
जैसे हिरनी नदी के जल के लिये हाँफती है,
2
जीविते परमेश्वर, हाँ परमेश्वर, का मैं प्यासा हूँ,
3
मेरे आँसू दिन और रात मेरा आहार हुए हैं;
4
मैं कैसे भीड़ के संग जाया करता था,
5
हे मेरे प्राण, तू क्यों गिरा जाता है?
6
हे मेरे परमेश्वर; मेरा प्राण मेरे भीतर गिरा जाता है,
7
तेरी जलधाराओं का शब्द सुनकर जल,
8
तो भी दिन को यहोवा अपनी शक्ति
9
मैं परमेश्वर से जो मेरी चट्टान है कहूँगा,
10
मेरे सतानेवाले जो मेरी निन्दा करते हैं,
11
हे मेरे प्राण तू क्यों गिरा जाता है? तू अन्दर ही अन्दर क्यों व्याकुल है?