诗篇 49

49

हे देश-देश के सब लोगों यह सुनो!

2

क्या ऊँच, क्या नीच

3

मेरे मुँह से बुद्धि की बातें निकलेंगी;

4

मैं नीतिवचन की ओर अपना कान लगाऊँगा,

5

विपत्ति के दिनों में मैं क्यों डरूँ जब अधर्म मुझे आ घेरे?

6

जो अपनी सम्पत्ति पर भरोसा रखते,

7

उनमें से कोई अपने भाई को किसी भाँति

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क्योंकि उनके प्राण की छुड़ौती भारी है

9

कोई ऐसा नहीं जो सदैव जीवित रहे,

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क्योंकि देखने में आता है कि बुद्धिमान भी मरते हैं,

11

वे मन ही मन यह सोचते हैं, कि उनका घर

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परन्तु मनुष्य प्रतिष्ठा पाकर भी स्थिर नहीं रहता,

13

उनकी यह चाल उनकी मूर्खता है,

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वे अधोलोक की मानो भेड़ों का झुण्ड ठहराए गए हैं;

15

परन्तु परमेश्‍वर मेरे प्राण को अधोलोक के

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जब कोई धनी हो जाए और उसके घर का

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क्योंकि वह मर कर कुछ भी साथ न ले जाएगा;

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चाहे वह जीते जी अपने आप को धन्य कहता रहे।

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तो भी वह अपने पुरखाओं के समाज में मिलाया जाएगा,

20

मनुष्य चाहे प्रतिष्ठित भी हों परन्तु यदि वे